आखिर हम किसका जश्न मना रहे हैं, आम्बेडकर का या आम्बेडकरवाद का? Dr. Ambedkar Jayanti, Hindi Article by Professor

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आखिर हम किसका जश्न मना रहे हैं, आम्बेडकर का या आम्बेडकरवाद का? Dr. Ambedkar Jayanti, Hindi Article by Professor

Dr. Ambedkar Jayanti, Hindi Article by Professor Sunil Goyal
लेखक: प्रो. सुनील गोयल
Published on 1 May 2023

डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर जी की 132 वीं जयंती पर विशेष आलेख

भारतीय गणतंत्र जिस किताब को सबसे ऊंचा दर्जा देता है वो है देश के संविधान की किताब है जिसे सही मायनों में महान माना जाता है. इस किताब की खूबसूरती इस बात में है कि देश में अलग-अलग तरह के विचारों, मान्यताओं, वर्गों के लोग रहते हैं लेकिन ये उन्हें एक बनाती है.

लेकिन जिस नींव को आधार बना कर उन्होंने देश का संविधान लिखा वो ये था कि उन्हें पता था कि भारत एक स्वतंत्र गणतंत्र होगा जहां संसदीय सरकार होगी.इसे लिखते वक्त आंबेडकर को इतिहास में रही बुराईयों को भी ख़त्म करना था और मुख्यधारा से दूर रहे दलित और आदिवासियों को इसमें शामिल करना था.1918 के दौर में कोलंबिया विश्वविद्यालय में आंबेडकर की जो विचारधारा थी वो उनके आख़िरी वक्त तक उनके साथ रही. बौद्ध धर्म अपनाकर उन्होंने सभी भारतीयों को करुणा और भाईचारे का संदेश दिया.

आंबेडकरवाद से मैं समझता हूं कि- संविधान और पूंजीवाद से जाति व्यवस्था का विनाश होगा और भारत एक औद्योगिक सभ्यता बनेगी.आंबेडकर ने पूंजीवाद के विरोध को संविधान के साथ एक सूत्र में पिरो दिया था और मैं मानता हूं कि यही आंबेडकरवाद है.

मुझे एक घटना याद आ रही है. एक दलित युवक को इसलिए मार डाला गया, क्योंकि उसने गाँव में बाबासाहेब की प्रतिमा लगवाई और बुद्ध पूर्णिमा मनाई। बुद्ध पूर्णिमा 7 मई को थी। जातिवादियों ने पहले युवक का अपहरण किया, फिर कुछ समय बाद जान से मार दिया। एक उत्साही अम्बेडकरवादी युवक, जो बाबासाहब डॉ. आंबेडकर और बुद्ध में विश्वास रखता था, उसे आखिर क्यों मार डाला गया ?जातिवाद और अम्बेडकरवाद की बली चढ़ने वालों के लिए समाज की जिम्मेदारी क्या है ?इसको दूसरे तरीके से देखेंगे तो सिर्फ उस युवक की हत्या नहीं हुई, बल्कि बाबासाहब डॉ. आंबेडकर और बुद्ध में आस्था रखने वाले हर किसी के सम्मान को रौंदा गया। और ऐसा आए दिन होता है। देश के हर हिस्से में बाबासाहब की मूर्तियां तोड़ी जाती हैं। गाड़ियों पर ‘जय भीम’ लिखवाने को लेकर अम्बेडकरी समाज के युवाओं के साथ मार-पीट होती है। और कई मामलों में उनकी हत्या भी हो जाती है।

सोचने वाली बात यह है कि किसी जीते-जागते व्यक्ति में इतना ज्यादा जातिवाद कैसे भर जाता है कि वो किसी की हत्या ही कर दे। संभव है कि यह जातीय खुन्नस है और अम्बेडकरवादी वह युवा पहले से ही जातिवादियों के निशाने पर होंगे। मुझे नहीं पता कि सवर्ण जातिवादी इतनी नफरत कहां से लाते हैं? किस धार्मिक उन्माद में वो किसी को अपनी आस्था मानने पर हत्या कर देते हैं। मैं इस घटना पर सवर्ण जातिवादियों को कुछ नहीं कहूंगा, क्योंकि वो शायद वही कर रहे हैं, जो उनके बाप-दादाओं ने उन्हें सिखाया है। लेकिन यहां सवाल यह है कि हम क्या करते हैं?
अम्बेडकरवाद आगे कैसे बढ़ेगा। क्योंकि जिस व्यक्ति के साथ मार-पीट होती है या फिर उसकी हत्या कर दी जाती है, उसका कसूर बस इतना भर होता है कि वह दलित समाज का व्यक्ति है। उसका कसूर बस इतना होता है कि वह अम्बेडकरवाद का झंडा थामे है और बाबासाहब डॉ. आंबेडकर की विचारधारा को बढ़ाने में लगा है।आज जिसे देखो वहीं, कहता नज़र आता है कि "मैं अम्बेडकरवादी हूँ" लेकिन क्या उसे ये पता होता है की "अम्बेडकरवाद" है क्या?
किसी को शायद ये बड़ी मुश्किल से पता होता है कि "अम्बेडकरवाद" असल में है क्या?


अम्बेडकरवाद" किसी भी धर्म, जाति, रूढ़वादिता, अंधविश्वास, अज्ञानता,किसी भी प्रकार के भेदभाव या रंगभेद को नहीं मानता, अम्बेडकरवाद मानव को मानव से जोड़ने या मानव को मानवता के लिए बनाने का नाम है। अम्बेडकरवाद वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर मानव के उत्थान के लिए किये जा रहे आन्दोलन या प्रयासों के नाम है।
एक अम्बेडकरवादी होना तभी सार्थक है जब मानव, वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपना कर समाज और मानव हित में कार्य किया जाये सुनी सुनाई या रुढ़िवादी विचारधाराओं को अपनाकर जीवन जीना अम्बेडकरवाद नहीं है।आज हर तरफ तथा कथित अम्बेडकरवादी पैदा होते जा रहे है... परन्तु अपनी रुढ़िवादी सोच को वो लोग छोड़ने को तैयार ही नहीं है.

क्या आज तक रुढ़िवादी सोच से किसी मानव या समाज का उद्धार हो पाया है?
अगर ऐसा होता तो शायद अम्बेडकरवाद का जन्म ही नहीं हो पाता...अम्बेडकरवादी कहलाने से पहले रुढ़िवादी विचारों को छोड़ना पड़ेगा, वैज्ञानिक तथ्यों पर विचार करना पड़ेगा, तभी अम्बेडकरवादी कहलाना सार्थक होगा अम्बेडकरवाद दुनिया की सबसे प्रतिभाशाली और विकसित विचारधारा का नाम है, दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान अम्बेडकरवाद में ना हो।

लेखक:
प्रो. सुनील गोयल
(लेखक प्रख्यात समाज वैज्ञानिक एवं स्तंभकार हैं, तथा वर्तमान में प्राध्यापक एवं अधिष्ठाता, समाज विज्ञान एवं प्रबंधन अध्ययनशाला के बतौर डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, डॉ. अम्बेडकर नगर (महू), जिला इन्दौर, मध्यप्रदेश, भारत में पदस्थ हैं.)
ईमेल: [email protected]

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