माहिष्मति के राजा बाहुबली, जिनके आगे शिव को जीतने वाला रावण भी हार गया था! Tale of Mahishmati King Sahastrabahu Arjuna, Who Imprisoned Ravana, Hindi Article

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माहिष्मति के राजा बाहुबली, जिनके आगे शिव को जीतने वाला रावण भी हार गया था! Tale of Mahishmati King Sahastrabahu Arjuna, Who Imprisoned Ravana, Hindi Article


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Published on 30 Jan 2023

माहिष्मति के राजा बाहुबली, जिनके आगे शिव को जीतने वाला रावण भी हार गया था!

रावण किसी परिचय का मोहताज नहीं. रामायण रावण की शक्तियों का लिखित इतिहास है.
 
रावण एक ऐसा पंडित था, महापंडित! जिसे मारने के लिए खुद भगवान विष्णु को धरती पर जन्म लेना पड़ा था.
इसने अपनी अनन्य भक्ति से भगवान शिव से अमरत्व का वरदान प्राप्त किया था. रावण ने अपनी तपस्या से शिव को जीता था, एक नहीं कई बार. इसका सबसे बड़ा उदाहरण लंका है, जिसे भगवान शिव ने रावण को दक्षिणा स्वरूप भेंट कर दी थी.

इंद्र के आसन और कैलाश पर्वत तक को हिलाकर रख देने वाले, महाज्ञानी और महाशक्तिशाली रावण को एक बार हार का सामना भी करना पड़ा था.

जी हां! पौराणिक कहानी के अनुसार, माहिष्मती राज्य के हैहयवंशीय सम्राट बाहुबली ने रावण को हराया था. इतना ही नहीं उन्होंने रावण को अपने राज्य में कैद भी कर लिया था.
आखिर कौन हैं रावण को हराने वाले बाहुबली, आइए जानते हैं -


भगवान दत्तात्रेय से मिला था हजार भुजाओं का वरदान

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, माहिष्मती साम्राज्य के सम्राट और हैहयवंश के अधिपति कार्तवीर्य और रानी कौशिक के पुत्र थे अर्जुन. आगे ये माहिष्मती राज्य के राजा बने.
राजा कार्तवीर्य पुत्र होने के कारण, इन्हें कार्तवीर्य अर्जुन भी कहा जाता है.

श्रीमद् भागवत जी में नवम स्कन्ध का पंद्रहवां अध्याय 'ऋचीक, जमदग्नि और परशुरामजी का चरित्र' कहता है कि कार्तवीर्य अर्जुन ने अपनी कठोर भक्ति साधना से भगवान नारायण के दशावतार दत्तात्रेय जी को प्रसन्न कर लिया था. बदले में कार्तवीर्य अर्जुन ने दत्तात्रेय से एक हजार भुजाओं को प्राप्त करने का वरदान प्राप्त कर लिया.
 
इसी के साथ उन्हें इन्द्रियों में अबाध बल, अकूट संपत्ति, वीरता, कीर्ति, अदम्य साहस और शारीरिक बल भगवान की कृपा से मिले.

इन सभी खूबियों और हजार भुजा होने के कारण इनका नाम सहस्त्रबाहु भी पड़ा. वहीं, बाहुबल के कारण इन्हें बाहुबली भी कहा गया.
भगवान से आशीर्वाद पाने के बाद सहस्त्रबाहु योगेश्र्वर हो गए. इन्हें सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त थीं. ये जब चाहें जैसा चाहें रूप धारण कर पूरे संसार में हवा की तरह से विचरण कर सकते थे.

नर्मदा किनारे हुआ रावण से सामना

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार इनका युद्ध महापंडित और भगवान शिव के अनन्य भक्त लंकापति रावण से हुआ था.

ये प्रसंग तब का है जब सहस्त्रबाहु नर्मदा नदी में स्त्रियों के साथ जल विहार कर रहे थे. इन्होंने अपनी हजार भुजाओं के बल से पूरी नर्मदा के जल का प्रवाह रोक लिया था.
उस समय, यहीं नर्मदा किनारे रावण का भी शिविर लगा हुआ था. नदी का पानी रुक जाने के कारण रावण के शिविर में भी जल भराव होने लगा. इस हरकत का पता लगाने के लिए रावण नर्मदा किनारे पहुंचा.

रावण भी बाहुबल में कमतर नहीं था. इसलिए उसने सहस्त्रबाहु को युद्ध के लिए ललकारा.
सहस्त्रबाहु को युद्ध में न हारने का वरदान प्राप्त था, इसलिए उसे कोई भी युद्ध में हरा नहीं सकता था. यहां भी वही हुआ. ललकारने पर सहस्त्रबाहु और रावण में युद्ध शुरू हो गया. ये किसी भी प्रकार से एक तरफा युद्ध था.
 

देखते ही देखते सहस्त्रबाहु ने रावण को अपनी हजार भुजाओं से दबोच लिया और उसे अपनी राजधानी माहिष्मति ले जाकर कैद कर लिया. हालांकि पुलस्त्य ऋषि के कहने पर सहस्त्रबाहु ने रावण को आजाद कर दिया. संभवत: इसके बाद रावण और सहस्त्रबाहु में मित्रता हो गई थी.

झेलना पड़ा भगवान परशुराम का प्रकोप

ऋषि जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका के घर पैदा हुए सबसे छोटे पुत्र का नाम था परशुराम.
सहस्त्रबाहु के पास संभवत: किसी भी प्रकार के वैभव की कोई कमी नहीं थी.

एक बार का प्रसंग है, जब सहस्त्रबाहु शिकार खेलने जंगल में गए, तो पास ही उन्हें ऋषि जमदग्नि का आश्रम दिखा.
जमदग्नि मुनि के पास कामधेनु गाय थी, जिस कारण उनके पास किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं थी. ऋषिवर ने सहस्त्रबाहु की सेना के साथ खूब आवभगत की.

सहस्त्रबाहु जमदग्नि मुनि के ऐश्वर्य को देख चौक गए. वह ये कतई स्वीकार नहीं कर पा रहे थे कि मुनि के पास मुझसे ज्यादा वैभव था.

सहस्त्रबाहु ने ऋषि जमदग्नि के आदर-सत्कार का तिरस्कार कर उनकी कामधेनु गाय को लेना चाहा.
सहस्त्रबाहु अपने बाहुबल के अभिमान में अंधे हो चुके थे. इसके लिए उन्होंने ऋषि की आज्ञा लेना भी उचित नहीं समझा. उन्होंने अपने सैनिकों को गाय को खोल कर ले जाने का आदेश दे दिया.
 
सैनिकों ने भी अपने राजा के आदेश का पालन में तनिक देरी न की और गाय को उसके बछड़े समेत माहिष्मति की ओर चल पड़े.

सहस्त्रबाहु के जाने के बाद भगवान परशुराम आश्रम में आए. यहां उनके पिता से इस बात का वृत्तांत सुनकर वह क्रोध के मारे आग बबूला हो गए. परशुराम अपने पिता के साथ हुए इस घोर अपमान को सहन नहीं कर पा रहे थे. वह अपना फरसा, ढाल, तरकश लेकर तुरंत सहस्त्रबाहु की ओर दौड़ पड़े.

अभी सहस्त्रबाहु अपने नगर पहुंचे भी नहीं थे कि परशुराम वहां आ पहुंचे. परशुराम को देखते ही सहस्त्रबाहु ने महाभारत के युद्ध में खत्म हुई सेना के बराबर एक सेना युद्ध के लिए भेज दी.

माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में 18 अक्षौहिणी सेना मारी गई थी. एक अक्षौहिणी सेना में 21,870 हाथी, 21,870 रथ, 65,610 घोड़े और 1,09,350 पैदल सिपाही होते हैं.

...और रक्तरंजित हो गया युद्ध का मैदान

परशुराम जी के लिए ये सैनिक कुछ भी नहीं थे. उन्होंने देखते ही देखते पूरी सेना को खत्म कर दिया. जैसे-जैसे परशुराम आगे बढ़ रहे थे, वैसे-वैसे बाहुबली के सेना ढेर होती जा रही थी.

भगवान परशुराम मन और वायु की गति के समान दुश्मन की सेना का अकेले संहार कर रहे थे. और कुछ ही देर में युद्ध का मैदान सैनिकों के रक्त से लाल हो गया.
 
अपने सैनिकों को खत्म होता देख अब सहस्त्रबाहु खुद मैदान में आ गए. उन्होंने अपनी हजार भुजाओं में 500 धनुष बाण चढ़ाए और एक साथ परशुराम जी की ओर छोड़ दिए.

परशुराम जी पर इनका कोई असर नहीं हुआ और उन्होंने अपने एक बाण से ही इन सभी बाणों को काट डाला.
अब तक बाहुबली सहस्त्रबाहु को इस युद्ध में किसी भी प्रकार की कोई बढ़त नहीं मिली थी. और परशुराम जी के सामने होते ऐसा होना संभव भी नहीं लग रहा था.

फिर सहस्त्रबाहु अपनी हजार भुजाओं में पहाड़ और पेड़ों को लेकर बड़ी तेजी से परशुराम जी की ओर दौड़े. इससे पहले कि सहस्त्रबाहु परशुराम जी पर हमला कर पाते, परशुराम ने अपने फरसे से उनकी भुजाएं काट दीं. इसके बाद उन्होंने एक ही प्रहार में सहस्त्रबाहु का सर धड़ से अलग कर दिया.


इस तरह सहस्त्रबाहु की मौत के बाद परशुराम जी कामधेनु गाय के साथ अपने पिता के आश्रम चले गए.

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