वसुंधरा समर्थकों के घर वापसी पर लगी रोक - Rajasthan Politics Articles in Hindi

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वसुंधरा समर्थकों के घर वापसी पर लगी रोक - Rajasthan Politics Articles in Hindi


लेखक: रमेश सर्राफ धमोरा (Writer Ramesh Sarraf Dhamora)
Published on 19 October 2022

राजस्थान में अगले विधानसभा चुनाव होने में करीबन एक साल का समय बाकी रह गया है। चुनाव लड़ने के इच्छुक नेता अब चुनावी मैदान में आकर लोगों से जन संपर्क करना शुरू कर दिया है। मगर राजस्थान में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस व मुख्य विपक्षी दल भाजपा में बड़े नेताओं की लड़ाई मिटने का नाम नहीं ले रही है। जिससे दोनों ही बड़े दलों का चुनावी अभियान भी प्रभावित हो रहा है। राजस्थान कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जहां अपनी कुर्सी बचाने के लिए अपने पूरे दाव पेच आजमा रहे हैं। वही उनके विरोधी पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट कांग्रेस आलाकमान के भरोसे मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं।

भाजपा की स्थिति तो कांग्रेस से भी अधिक खराब है। जहां कांग्रेस में गहलोत व पायलट के दो ही खेमे है। वहीं भाजपा में तो हर बड़े नेता का अपना खेमा है। आपसी गुटबाजी को मिटाने के लिए भाजपा के बड़े नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, संगठन महासचिव बीएल संतोष लगातार राजस्थान का दौरा कर पार्टी के सभी नेताओं को एकजुट करने का प्रयास करते हैं। मगर जैसे ही दिल्ली से आए बड़े नेता राजस्थान से बाहर निकलते हैं। उसके तुरंत बाद ही प्रदेश भाजपा के नेता फिर से एक दूसरे की टांग खिंचाई में लग जाते हैं।

भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया आज भी खुद के मुख्यमंत्री होने का भ्रम पाले हुए हैं। उनका व्यवहार पूर्व मुख्यमंत्री का न होकर आज भी मुख्यमंत्री की तरह का ही रहता है। वसुंधरा राजे मानती है कि राजस्थान में भाजपा की सबसे बड़ी नेता वही है। उनके बिना कभी भी प्रदेश में भाजपा की सरकार नहीं बन सकती है। एक समय था जब राजस्थान में वसुंधरा का मतलब ही भाजपा होता था। मगर अब समय पूरी तरह से बदल चुका है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भाजपा में क्षेत्रीय नेता कमजोर पड़े हैं। वहीं केंद्रीय नेतृत्व मजबूत हुआ है।

आज भाजपा में सारे फैसले मोदी, शाह, नड्डा करते है। दिल्ली आलाकमान का फरमान ही भाजपा में कानून माना जाता है जिसे सभी मानने को बाध्य होते हैं। राजस्थान को लेकर भी भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की सोच कुछ ऐसी ही मानी जाती है। मोदी, शाह की जोड़ी ने 2018 के विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे को पूरा फ्री हैंड दिया था तथा उनको ही नेता प्रोजेक्ट कर राजस्थान विधानसभा का चुनाव लड़ा गया था। मगर उस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धुआंधार प्रचार के बावजूद भाजपा चुनाव हार गई थी।

उस समय वसुंधरा राजे का सबसे अधिक विरोध उनके ही राजपूत समाज द्वारा किया गया था। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभाओं में वसुंधरा राजे की उपस्थिति के दौरान ही जनता द्वारा वसुंधरा के खिलाफ नारेबाजी की जाती थी कि मोदी तुझसे बैर नहीं वसुंधरा तेरी खैर नहीं। और उस समय प्रदेश की जनता द्वारा वसुंधरा राजे के खिलाफ की गई नारेबाजी शत प्रतिशत सही भी साबित हुई थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा जहां 163 से 73 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा लगातार दूसरी बार सभी 25 लोकसभा जीतने में सफल रही थी। उस समय के चुनाव परिणामों से भी वसुंधरा का विरोध जाहिर हो जाता है।

विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा आलाकमान ने वसुंधरा राजे को राजस्थान की राजनीति से दूर कर उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया था। राजस्थान में वसुंधरा विरोधी धड़े के डा. सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष व गुलाबचंद कटारिया को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनने के बावजूद वसुंधरा राजे का मन दिल्ली में नहीं लगा और वह लगातार राजस्थान में ही सक्रिय रहने का प्रयास करने लगी। समय-समय पर वसुंधरा राजे गुट के नेताओं ने उनके पक्ष में अभियान चलाकर उन्हें राजस्थान में नेता प्रोजेक्ट करने की मांग भी करते रहे। मगर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश अध्यक्ष पूनिया व उनकी टीम को काम करने के लिए फ्री हैंड दे दिया। संगठन में भी वसुंधरा समर्थकों को ज्यादा तवज्जो नहीं मिली। वसुंधरा ने कई बार प्रदेश में यात्राएं निकालने का प्रयास किया मगर भाजपा आलाकमान ने उनको इजाजत नहीं दी। जिससे उनको अपने कई कार्यक्रम रद्द भी करने पड़े थे।

अब विधानसभा चुनाव नजदीक देखकर वसुंधरा राजे फिर से सक्रिय हो रही है। देव दर्शन यात्रा के बहाने वह प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर अपने समर्थकों के माध्यम से अपनी ताकत का एहसास करा रही है। हाल ही में उन्होंने बीकानेर के देशनोक में करणी माता मंदिर में दर्शन करने के बाद वहां एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया था। उन्होने उसी दिन बीकानेर में भी एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया था।

बीकानेर जनसभा में वसुंधरा राजे पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी को पार्टी में फिर से शामिल करवाना चाहती थी। मगर पार्टी संगठन ने इजाजत नहीं दी फलस्वरूप देवी सिंह भाटी की भाजपा में घर वापसी नहीं हो सकी। यह वसुंधरा राजे के लिए एक बड़ा झटका था। देवी सिंह भाटी बीकानेर क्षेत्र के बड़े नेता माने जाते हैं और पिछले लोकसभा चुनाव में अर्जुन राम मेघवाल को प्रत्याशी बनाने से नाराज होकर भाजपा छोड़ दी थी। मगर अब वह पार्टी में फिर से घर वापसी चाहते हैं और इसकी उन्होंने घोषणा भी कर दी थी। भाटी को पार्टी में शामिल नहीं होने से उनकी बहुत किरकिरी हुई। जिससे नाराज होकर उन्होंने वसुंधरा राजे व उनके सर्थकों को जमकर खरी-खोटी भी सुनाई।

देवी सिंह भाटी की घर वापसी रोकने के साथ ही पार्टी आलाकमान ने अर्जुन राम मेघवाल व वासुदेव देवनानी सहित कुछ अन्य नेताओं की एक स्क्रीनिंग कमेटी बना दी है। जो पार्टी में शामिल होने वाले नेताओं के बारे में एक रिपोर्ट बनाकर प्रदेश अध्यक्ष को सौपेगी। उसके बाद प्रदेश अध्यक्ष निर्णय करेंगे कि शामिल होने वाले नेताओं को शामिल किया जाए या नहीं।

स्क्रीनिंग कमेटी बनने से वसुंधरा समर्थक पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी, सुरेंद्र गोयल, राजकुमार रिणवा, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महरिया, पूर्व विधायक विजय बंसल सहित कई नेताओं की घर वापसी लटक गई है। वहीं पूर्व में वसुंधरा वसुंधरा राजे के कट्टर विरोधी रहे घनश्याम तिवाड़ी कि ना केवल भाजपा में घर वापसी ही हुई बल्कि उन्हें राज्यसभा में भी भेजा जा चुका है तिवारी 2018 में वसुंधरा से नाराज होकर अपनी अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़े थे। उसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे। पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह के बेटे जगत सिंह को भी फिर से भाजपा में शामिल कर भरतपुर का जिला प्रमुख बनवाया जा चुका है।

इसके अलावा पूर्व मंत्री लक्ष्मीनारायण दवे,  राधेश्याम गंगानगर,  हेमसिंह भड़ाना,  धनसिंह रावत,  सुखराम कोली, अनिल शर्मा, जीवाराम चौधरी, विमल अग्रवाल, प्रभुदयाल सारस्वत, राजेश दीवान, कुलदीप धनकड़, देवीसिंह शेखावत, महेंद्र सिंह भाटी, अजय सोनी, प्रहलाद टांक, अतरसिंह पगरिया, रत्ना कुमारी, देवेंद्र रावत, विक्रम सिंह जाखल सहित कई लोगों की घर वापसी हो चुकी है। इन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी से बगावत कर चुनाव लड़ा था। वसुंधरा समर्थकों की घर वापसी रोककर पार्टी आलाकमान ने उन्हें सीधा संदेश दे दिया है कि राजस्थान में अब उनके मुताबिक राजनीति नहीं होगी। पार्टी नेतृत्व ही फैसले करेगा। अब आगे देखना है कि वसुंधरा राजे भाजपा आलाकमान के समक्ष हथियार डालकर समर्पण कर देती है या बगावत कर अपनी ताकत दिखाती हैं। इस बात का पता तो आने वाले समय में ही चल पाएगा।

आलेखः
रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)


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