23 अक्टूबर धनतेरस पर विशेष: धनतेरस को करते हैं यमराज की पूजा - Dhanteras Hindi Article 2022

Fixed Menu (yes/no)

23 अक्टूबर धनतेरस पर विशेष: धनतेरस को करते हैं यमराज की पूजा - Dhanteras Hindi Article 2022


लेखक: रमेश सर्राफ धमोरा (Writer Ramesh Sarraf Dhamora)
Published on 21 October 2022

हमारे देश में सर्वाधिक धूमधाम से मनाए जाने वाले त्योहार दीपावली का प्रारम्भ धनतेरस से हो जाता है। धनतेरस छोटी दीवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है। धनतेरस पूजा को धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस के दिन नई वस्तुएं खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। अगर सम्भव न हो तो कोई बर्तन खरीदे। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है।

धनतेरस का दिन धन्वन्तरी त्रयोदशी या धन्वन्तरि जयन्ती भी होती है। धनतेरस को आयुर्वेद के देवता का जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन गणेश लक्ष्मी घर लाएं जाते है। इस दिन लक्ष्मी और कुबेर की पूजा के साथ-साथ यमराज की भी पूजा की जाती है। पूरे वर्ष में एक मात्र यही वह दिन है जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। यह पूजा दिन में नहीं की जाती अपितु रात्रि होते समय यमराज के निमित्त एक दीपक जलाया जाता है।

धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस दिन का विशेष महत्व है। शास्त्रों में कहा है कि जिन परिवारों में धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है। वहां अकाल मृत्यु नहीं होती। घरों में दीपावली की सजावट भी इसी दिन से प्रारम्भ होती है। इस दिन घरों को लीप-पोतकर, चैक, रंगोली बना सायंकाल के समय दीपक जलाकर लक्ष्मी जी का आवाहन किया जाता है। इस दिन पुराने बर्तनों को बदलना व नए बर्तन खरीदना शुभ माना गया है। धनतेरस को चांदी के बर्तन खरीदने से तो अत्यधिक पुण्य लाभ होता है। इस दिन कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, कुआं, बावली, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाना चाहिए।

धनतेरस के दिन यमराज को प्रसन्न  करने के लिए यमुना स्नान भी किया जाता है अथवा यदि यमुना स्नान सम्भव न हो तो स्नान करते समय यमुना जी का स्मारण मात्र कर लेने से भी यमराज प्रसन्न होते हैं। हिन्दु धर्म की ऐसी मान्यता है कि यमराज और देवी यमुना दोनों ही सूर्य की सन्ताने होने से आपस में भाई-बहिन हैं और दोनों में बड़ा प्रेम है। इसलिए यमराज यमुना का स्नान करके दीपदान करने वालों से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होते और उन्हें  अकाल मृत्यु के दोष से मुक्त  कर देते है।

धनतेरस के दिन यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता हैं। इस दीप को यमदीवा अर्थात यमराज का दीपक कहा जाता है। रात को घर की स्त्रियां दीपक में तेल डालकर नई रूई की बत्ती बनाकर, चार बत्तियां जलाती हैं। दीपक की बत्ती दक्षिण दिशा की ओर रखनी चाहिए। जल, रोली, फूल, चावल, गुड़, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर स्त्रियां यम का पूजन करती हैं। चूंकि यह दीपक मृत्यु के नियन्त्रक देव यमराज के निमित्त जलाया जाता है, अतः दीप जलाते समय पूर्ण श्रद्धा से उन्हें नमन तो करें। साथ ही यह भी प्रार्थना करें कि वे आपके परिवार पर दया दृष्टि बनाए रखें और किसी की अकाल मृत्यु न हो। धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है।

धनतेरस को मृत्यु के देवता यमराज जी की पूजा करने के लिए संध्या के समय एक वेदी (पाट्टा) पर रोली से स्वास्तिक बनाइये। उस स्वास्तिक पर एक दीपक रखकर उसे प्रज्वलित करें और उसमें एक छिद्रयुक्त कोड़ी डाल दें। अब इस दीपक के चारों ओर तीन बार गंगा जल छिडकें। दीपक को रोली से तिलक लगाकर अक्षत और मिष्ठान आदि चढाएं। इसके बाद इसमें कुछ दक्षिणा आदि रख दीजिए जिसे बाद में किसी ब्राह्मण को दे देवें। अब दीपक पर कुछ पुष्पादि अर्पण करें। इसके बाद हाथ जोडकर दीपक को प्रणाम करें और परिवार के प्रत्येक सदस्य को तिलक लगाएं। अब इस दीपक को अपने मुख्य द्वार के दाहिनी और रख दीजिए। यम पूजन करने के बाद अन्त में धनवंतरी पूजा करें।

इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है। कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और उन्होने राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।

विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा। परन्तु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की। हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु के लेख से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है। इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है। उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।

दीपावाली धन से ज्यादा स्वास्थ्य और पर्यावरण पर आधारित त्योहार है। दीपावली एक ऐसा त्योहार है जिसके अपने पर्यावरणीय निहितार्थ है। मौसम मे बदलाव और दीपपर्व मे घनिष्ठ सम्बन्ध है। इसे समझते हुए कृपया पर्यावरण को नुकसान पहुचाने वाली गतिविधिया ना करे।

आलेखः रमेश सर्राफ धमोरा

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)


Web Title: Premium Unique Content Writing on Article Pedia









अस्वीकरण (Disclaimer)
: लेखों / विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी है. Article Pedia अपनी ओर से बेस्ट एडिटोरियल गाइडलाइन्स का पालन करता है. इसके बेहतरी के लिए आपके सुझावों का स्वागत है. हमें 99900 89080 पर अपने सुझाव व्हाट्सअप कर सकते हैं.

क्या आपको यह लेख पसंद आया ? अगर हां ! तो ऐसे ही यूनिक कंटेंट अपनी वेबसाइट / ऐप या दूसरे प्लेटफॉर्म हेतु तैयार करने के लिए हमसे संपर्क करें !



Post a Comment

0 Comments