मुश्किल घड़ियां हों, उलझी कड़ियां हों...

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मुश्किल घड़ियां हों, उलझी कड़ियां हों...


मुश्किल घड़ियां हों, उलझी कड़ियां हों,
बेशर्त तुम्हारे साथ हैं 

डॉक्टर एक शब्द नहीं बल्कि जज्बात हैं!



त्यौहार हो, रविवार हो, या कर्फ्यू वाला बाजार हो
खुद की तबीयत ठीक नहीं, 
या घर में कोई बीमार हो,
धर्म के दंगे हों
या हादसा सड़क का
कोरोना जैसा महामारी हो,
या हल्का बुखार हो 
बिना यह पूछे कि 
तुम्हारा सर कहां झुकता है 
वह इलाज को तैयार है 

डॉक्टर एक शब्द नहीं बल्कि जज्बात है!

आज जिंदगी और मौत का एहसास लिए 
अस्पतालों में पड़े
जिस बीमारी से आप डर गए हैं
वो उनके सामने खड़े हैं 
पर ना डरेंगे, ना झुकेंगे, ना लौट के घर जाएंगे 
वो इस वादे के साथ हैं 

डॉक्टर एक शब्द नहीं बल्कि जज्बात है!


उलझी कड़ियां हों,
मुश्किल घड़ियां हों
बेशर्त तुम्हारे साथ है 

डॉक्टर एक शब्द नहीं बल्कि जज्बात है! 

अरे हाथ उठे हैं उन पर
पर उन्होंने तो हाथ बढ़ाया है  
आंख, हाथ, सर, ना जाने क्या-क्या टूटा है
पर उन्होंने तो गले लगाया है 


आज तालियों और थालियों की आवाज में 
थप्पड़ की गूंज दब जाएगी 
जब सारी विपदा टल जाएगी 
औकात दिखाई जाएगी 
फिर मीडिया नॉलेज टेस्ट करेगा 
किसी सत्यमेव जयते पर सच हार जाएगा
पेशेंट के इंफेक्शन से न जाने कितने डॉक्टर्स ने 
जान गंवाई
कोई इज्जत या शहीद का तमगा नहीं मिलता 
ना अदालत में सुनवाई होगी 

आज डॉक्टर, नर्स, रिसर्च, सफाई कर्मी सारे भगवान हो गए 
अरे यह इंसान ही हैं
इंसान ही रहने दो
कोरोना के पहले भी हैं,
बाद भी होंगे 
यह निस्वार्थ भाव के योद्धा हैं 
इन्हें दिल में जगह दो

 
भूख है, प्यास है, 
कितने झंझट हैं 
हजारों व्यवधान हैं 
यह सब झेलते हैं
ये भी इंसान हैं 

अगली बार जब हाथ उठे 
या जुबां पर गालियां आए
सोचना जब सारी दुनिया थम गई है
वो चल रहे हैं 
तुम घर से काम करो 
वह घर पर काम संभाले हैं 
अरे ये इंसानियत की बात है 

डॉक्टर एक शब्द नहीं बल्कि जज्बात है!

मुश्किल घड़ियां हों, 
उलझी कड़ियां हों 
बेशर्त तुम्हारे साथ है

डॉक्टर एक शब्द नहीं बल्कि जज्बात है!

- सौरभ राय

Saurabh Ray



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